Saturday, January 26, 2013

नवगीत विमर्श-2012


नवगीत कार्यशाला 2012

नवगीत को केन्द्र में रखकर उसके सन्दर्भ में विभिन्न कोणों से चर्चा करने के उद्देश्य से वर्ष 2012 की दो दिवसीय "नवगीत कार्यशाला" का आयोजन दिनांक 17-18 नवम्बर, 2012 को अनुभूति पत्रिका की संपादक पूर्णिमा वर्मन के लखनऊ स्थित आवास 'कालिंदी विले' में किया गया। वीथियों में चित्रकार, नवगीतकार रोहित रूसिया के द्वारा विभिन्न नवगीतों पर आधारित हृदयस्पर्शी नवगीत पोस्टर सभी की प्रशंसा के केन्द्र में रहे। रुसिया जी के द्वारा बनाये गये कविता पोस्टर नवगीत कार्यशाला की महत्ता और वर्तमान साहित्यिक परिदृश्य में नवगीत की प्रासंगिकता का जयनाद कर रहे थे। कार्यशाला में देश के विभिन्न प्रान्तों से पधारे मूर्धन्य नवगीतकारों की गरिमामयी उपस्थिति ने चार चाँद लगा दिए। हरियाणा से कुमार रवींद्र, बिहार से नचिकेता, भोपाल से दिवाकर वर्मा, कानपुर से वीरेंद्र आस्तिक, दिल्ली से डा० जगदीश व्योम, डा० राजेन्द्र गौतम, मुरादाबाद से अवनीश सिंह चौहान, डा० महेश दिवाकर, छत्तीसगढ़ से डा० सीमा अग्रवाल, महाराष्ट्र से ओमप्रकाश तिवारी,  मध्यप्रदेश से रोहित रूसिया, नितिन जैन प्रतापगढ़ से रविशंकर मिश्र, कलकत्ता से श्रीकान्त, मुम्बई से कल्पना रामानी, बरेली से डा० एम०पी०सिंह, लखनऊ से निर्मल शुक्ल, मधुकर अष्ठाना, अमिता दुबे, अनिल वर्मा, संध्या सिंह, आभा खरे, रामशंकर वर्मा आदि के अतिरिक्त दूसरे दिवस की नवगीत काव्य संध्या में अनेक प्रतिष्ठित नवगीतकार उपस्थित थे। कार्यशाला में पूर्णिमा वर्मन के साहित्यप्रेमी माता-पिता और पति श्री प्रवीण सक्सेना भी दो दिवसों तक सतत प्रवाही नवगीत-गंगा में रस स्नात होते रहे। 
17-11-2012 की प्रातः अल्प चायपान के पश्चात् पूर्व निश्चित कार्यक्रमानुसार हिसार हरियाणा से पधारे वयोवृद्ध प्रख्यात नवगीतकार कुमार रवीन्द्र के करकमलों द्वारा करतल ध्वनि के बीच मंगलदीप प्रज्ज्वलित कर कार्यशाला का प्रारंभ हुआ। इस वृहद् आयोजन की आयोजक हिंदी सेवी सम्मान से विभूषित प्रख्यात हिंदी सेवी पूर्णिमा वर्मन द्वारा लघु चित्रों के माध्यम से नवगीत पर प्रकाश डाला गया। इसके पश्चात नवगीत के सशक्त हस्ताक्षर कुमार रवींद्र, नचिकेता, डा० राजेंद्र गौतम आदि ने हिंदी कविता में नवगीत के प्रादुर्भाव, कलेवर, वैशिष्ट्य, प्रासंगिकता, लोक सम्प्रक्तता, विभिन्न कालखंडों में इसके विकास पर सारगर्भित, प्रामाणिक विशद विवेचन प्रस्तुत किया। डा० राजेंद्र गौतम ने देश-विदेश में हिंदी, हिंदी कविता विशेषकर नवगीत के रचनाकारों के बीच सेतु के दायित्व का निर्वहन करने के लिए पूर्णिमा जी की प्रशंसा की। उन्होंने नये नवगीतकारों का मार्गदर्शन करते हुये कहा कि जो भी लिखें वह तार्किक, वैज्ञानिक और युग सापेक्ष दृष्टिकोण पर आधारित हो, वह लोक सम्पृक्त हो। 
वरिष्ठ पुरोधा नवगीतकारों द्वारा नवगीत की सांगोपांग मीमांसा के बाद 'नवगीत की पाठशाला' से नवगीत सीखने वाले नवगीतकारों कल्पना रामानी, डा० सीमा अग्रवाल, श्रीकांत मिश्र, रविशंकर मिश्र, संध्या सिंह, रामशंकर वर्मा के द्वारा अपने नवगीत प्रस्तुत किया गये तथा उपस्थित नवगीतकारों ने इनकी समीक्षा की। जिज्ञासु रचनाकारों ने प्रश्न-प्रतिप्रश्न कर ज्ञानार्जन किया। 
मध्याह्न भोजन अन्तराल के बाद यह समागम पुनः प्रारंभ हुआ। सायंकाल कालिंदी विला की छत पर पूर्णिमा वर्मन की पटकथा पर आधारित प्रसिद्द नुक्कड़ नाट्य-निर्देशक नितिन जैन निर्देशित नुक्कड़ नाटक 'कंगाली में आटा गीला' का प्रभावी प्रदर्शन हुआ। प्रसिद्द नवगीतकारों के नवगीतों के अंशों के प्रयोग ने नुक्कड। नाटक की सामयिक कथावस्तु को जीवंत कर दिया। इसके पश्चात् नवगीत संगीत संध्या की सरस प्रस्तुति ने सहज ही उपस्थित श्रोताओं की तालियाँ बटोरी और ताल-वाद्य की जुगलबंदी ने नवगीतों का बहु आयामी पहलू रेखांकित किया। 
गीत-संगीत की मनोहारी प्रस्तुति के बाद आयोजक पूर्णिमा वर्मन द्वारा नाट्य कलाकारों तथा निर्देशक को विशेष रूप से बनवाये गये "अनुभूति" स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया गया। रात्रि भोजन के पश्चात् पहले दिवस के कार्यक्रमों का समापन हुआ।
दूसरे दिवस प्रातः चायपान के पश्चात् प्रथम सत्र में भारत के विभिन्न प्रदेशों में नवगीत के अस्तित्व और अस्मिता की चुनौतियों पर इन प्रदेशों के ख्यातिप्राप्त नवगीतकारों ने अपने आलेख प्रस्तुत किये। बिहार से श्री नचिकेता, मध्य प्रदेश से श्री दिवाकर वर्मा, उत्तर प्रदेश से श्री वीरेंद्र आस्तिक, महाराष्ट्र से ओमप्रकाश तिवारी ने इन प्रदेशों में नवगीत को शिखर पर पहुँचाने वाले नवगीतकारों के योगदान और उनकी रचनाधर्मिता पर भी सारगर्भित विवेचन प्रस्तुत किया।
मध्याह्न भोजन से पूर्व युवा नवगीतकार श्री अवनीश सिंह चौहान के नवगीत संकलन "कागज़ का टुकड़ा" का लोकार्पण समस्त नवगीतकारों ने मिलकर किया। गत वर्ष की नवगीत कार्यशाला 2011 पर आधारित पूर्णिमा वर्मन की पुस्तक नवगीत एक परिसंवाद का लोकार्पण किया गया। मनीषी कवियों द्वारा इनकी समालोचना भी की गयी। दूसरे दिन के दूसरे सत्र में नवगीत के प्रचार प्रसार में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तथा तकनीक व् नाटकों के प्रयोग पर डा० जगदीश व्योम, श्रीकांत मिश्र, रोहित रूसिया, नितिन जैन आदि द्वारा उपयोगी सुझाव दिए गये।
कार्यशाला के औपचारिक समापन से पूर्व आयोजक पूर्णिमा वर्मन ने समस्त सहभागियों को विशिष्ट स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया।
चुने हुये नवगीतों को कलाकारों ने संगीत के साथ प्रस्तुत किया। इस अवसर पर चित्रकार विजेन्द्र विज द्वारा निर्मित लघु फिल्म तथा डा० जगदीश व्योम की कविता पर प्रत्यूष द्वारा तैयार की गई लघु फिल्म "माँ कबीर की साखी जैसी" को प्रदर्शित किया गया जिसकी सभी ने भरपूर सराहना की तथा नवगीतों पर इस तरह की लघु फिल्में बनाये जाने पर विचार करने की बात कही गई।
कार्यशाला का अंतिम सत्र नवगीत काव्य संध्या को समर्पित था। प्रारंभ से अंत तक नवगीतकारों ने अपनी विविधतापूर्ण शैली में श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। इन नवगीतों में लोकचेतना, संस्कृति, समकालीन सरोकार, हताशा, आम जन की पीड़ा, प्रेम प्रकृति सभी कुछ मुखरित हुआ। नवगीतों का प्रस्तुतिकरण बहुत ही प्रभावशाली रहा

यश वैभव के हिम पर्वत पर।
-------संध्या सिंह

मगर सब अपने रूठ चले।
जीवन भर आपाधापी के 
क्या परिणाम मिले 
-----अनिल वर्मा

नवगीत का उन्वान है हिंदी
अशिक्षा मूढ़ता के श्राप का 
निर्वान है हिंदी। 
---------- रामशंकर वर्मा 

----ओम प्रकाश तिवारी

बारिश ने टाइप किया मौसम का पत्र।
---पूर्णिमा वर्मन

ये कैसा क्रन्दन 
दूर खड़े चुप रहे देखते 
हम पलाश के वन।
-------जगदीश व्योम 

कुर्सियों से कुर्सियों तक की लड़ाई का 
पहाडा है। 
----सुरेश उजाला

भ्रष्टाचार बढ़ा है भारी
रिश्वत चोर बाजारी फैली 
सदाचार ने हिम्मत हारी।
..डाक्टर महेश दिवाकर 

हुई प्लेटिनम दाल।
अब तो सपनों का भी मन में 
पड़ने लगा अकाल।
----मधुकर अष्ठाना 

तुम्हे दिखते नहीं क्या?
---- निर्मल शुक्ल 

प्रहरियों के राम जी मालिक।
-----दिवाकर 

अभी बीता पखवारा है
चादर नई खाट पर 
अब तक नहीं बिछाई है। 
---नचिकेता 

मुस्कराईं देव प्रतिमाएं
अभी धरती सुरक्षित है।
------कुमार रवींद्र 

है शब्द-शब्द उलझा
दरके दरके शीशे में
चेहरा बाँचा समझा
सिद्ध जनों पर 
हँसता जाये
टुकड़ा कागज का।
---अवनीश सिह चौहान

झुकाओ मत मुझे
एक अवसर दे रहा अब भी तुझे। 
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बाद अभावों की आई है 
डूबी गली गली।
दम साधे हम देख रहे हैं 
कागज की नाव चली।
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औरों के क्रूर आचरन 
कई बार कर लिए सहन।
अपनों का अनजानापन 
मीत सहा नहीं जाता।







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