''समकालीन गीत आज किसी भावुक मन की अभिव्यक्ति भर या गाने गुनगुनाने भर की चीज न रहकर समय की विसंगतियों से सीधी आँख मिलाते हुए कविता और आदमीयत को बनाये और बचाये रखने की मुहिम में अपनी गीतात्मक धुरी पर संयत है, और किसी से कमतर नहीं है। जीवन का जो तमाम-कुछ शुभ और सुंदर, समय के क्रूर जबड़े का हिस्सा बन चुका है। वे चाहे जातीय स्मृतियाँ हों, संचित जीवन-मूल्य हों, परम्परित नाते-रिश्ते की ऊष्मा हो, लोक और लोकजीवन की छवियाँ हों, शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध के बारीक इंद्रिय-संवेदन हों, नवगीत ने उसको बचाये रखने का बीड़ा उठाया है।''
-शिव कुमार मिश्र
-शिव कुमार मिश्र
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