Wednesday, November 25, 2015

नवगीत परिसंवाद-2015



 नवगीत महोत्सव-२०१५

हिन्दी नवगीत पर केन्द्रित नवगीत महोत्सव कालिन्दी विले, गोमती नगर, लखनऊ में २१ एवं २२ नवम्बर २०१५ को मनाया गया। बिना किसी सरकारी सहयोग के होने वाला नवगीत का यह कार्यक्रम अपनी तरह का अनूठा कार्यक्रम है जो विगत वर्षों से मनाया जा रहा है। शारजाह, संयुक्त अरब अमीरात में रह रही सुश्री पूर्णिमा वर्मन का नवगीत के प्रति विशेष लगाव और नवगीत को और अधिक लोकप्रिय बनाने की दृढ़ इच्छा का ही यह परिणाम है कि इतने बड़े स्तर पर नवगीत का यह आयोजन निरन्तर हो रहा है। नवगीत के वरिष्ठतम और नये रचनाकार एक साथ दो दिन के इस समारोह में एक साथ मिलकर नवगीत पर चर्चा करते हैं, नवगीत को समझने समझाने तथा उसकी गुत्थियों को सुलझाने की दिशा में मिल बैठकर विमर्श करते हैं। दरअसल नवगीत को ऐसे आयोजन के द्वारा निरन्तर लोकप्रिय तो बनाया ही जा रहा है इसके अतिरिक्त अनेक प्रतिभावान नवयुवक और नवयुवतियाँ नवगीत से प्रभावित होकर नवगीत से जुड़ रहे हैं। नवगीत अपने समकालीन सन्दर्भों को कथ्य बनाता ही है इसकी खास बात यह है कि समकालीन कथ्य को आन्तरिक लय और प्रवाह के साथ प्रस्तुत करता है जिससे इसकी प्रभावक शक्ति और बढ़ जाती है तथा श्रोता के मन पर सीधे असर करती है। नयी कविता का रूखापन नवगीत में सरसता के साथ प्रस्तुत होकर उसकी सम्प्रेषणीयता को द्विगुणित कर देता है। यही कारण है कि नवगीत वर्तमान की मुख्य काव्य विधा बन गया है। पूरे वर्ष भर नवगीत में कहाँ कहाँ, कौन कौन क्या क्या कार्य करता रहा है इसकी पूरी पड़ताल इस समारोह में की जाती है। कितने नवगीत संग्रह प्रकाशित हुए हैं, कितनी समीक्षाएँ नवगीत संग्रहों की हुई हैं, कितने नये रचनाकार नवगीत लेखन से जुड़े हैं यह सब यहाँ चर्चा का विषय बनते हैं। कोशिश यह रहती है कि उन रचनाकारों को आमंत्रित किया जाये जो पहले नहीं आये हों इस प्रकार नवगीत के सभी रचनाकारों के साथ बारी बारी से संवाद करने का अवसर मिल जाता है। नवगीत की पाठशाला से जुड़े नये पुराने नवगीतकारों को दो दिवसीय नवगीत महोत्सव की पूरे वर्ष प्रतीक्षा रहती है। यह समूचा कार्यक्रम पारिवारिक माहौल जैसा होता है।
नवगीत समारोह का शुभारम्भ दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। गीतिका वेदिका द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वन्दना के उपरान्त पूर्णिमा वर्मन की माता जी और नवगीत समारोह के सदस्य श्रीकान्त मिश्र को विनम्र श्रद्धांजलि देकर उनकी स्मृतिशेष को नमन किया गया।
विभिन्न नवगीतों पर रोहित रूसिया और पूर्णिमा वर्मन द्वारा बनायी गयी चित्र प्रदर्शनी को सभी ने देखा और सराहा।    
प्रथम सत्र में नवगीत की पाठशाला से जुड़े नये रचनाकारों द्वारा अपने दो दो नवगीत प्रस्तुत किये गये। नवगीत पढ़ने के बाद प्रत्येक के नवगीत पर वरिष्ठ नवगीतकारों द्वारा टिप्पणी की गई इससे नये रचनाकारों को अपनी रचनाओं को समझने और उनमे यथोचित सुधार का अवसर मिलता है। गीतिका वेदिका के नवगीतों पर रामकिशोर दाहिया ने टिप्पणी की, शुभम श्रीवास्तव ओम के नवगीतों पर संजीव वर्मा सलिल ने अपनी टिप्पणी की, रावेन्द्र कुमार रवि के नवगीतों पर राधेश्याम बंधु द्वारा टिप्पणि की गई, इसी प्रकार रंजना गुप्ता, आभा खरे, भावना तिवारी और शीला पाण्डेय के नवगीतों पर क्रमशः डा० रणजीत पटेल, गणेश गम्भीर, मधुकर अष्ठाना एवं राधेश्याम बंधु द्वारा टिप्पणी की गई। इस मध्य कुछ अन्य प्रश्न भी नये रचनाकारों से श्रोताओं द्वअरा पूचे गये जिनका उत्तर रचनाकारों द्वअरा दिया गया। प्रथम सत्र के अन्त में डा० रामसनेही लाल शर्मा यायावर ने नवगीत की रचना प्रक्रिया पर विहंगम दृष्टि डालते हुये बताया कि ऐसा क्या है जो वनगीत को गीत से अलग करता है। डा० यायावर ने अपनी नवगीत कोश योजना की भी जानकारी देते हुए बताया कि वे विश्व विद्यालय अनुदान आयोग की अति महत्त्वपूर्ण योजना के अन्तर्गत नवगीत कोश का कार्य शुरू करने जा रहे हैं यह कार्य नवगीत के क्षेत्र में अति महत्त्वपूर्ण और विश्वसनीय कार्य होगा।
दूसरे सत्र में वरिष्ठ नवगीतकारों द्वारा अपने प्रतिनिधि नवगीतों का पाठ किया गया ताकि नये रचनाकार नवगीतों के कथ्य, लय, प्रवाह, छन्द आदि को समझ सकें। नवगीत पाठ के बाद सभी को प्रश्न पूछने की पूरी छूट दी गई जिसका लाभ नवगीतकारों ने उठाया। इस सत्र में सर्व श्री योगेन्द्र दत्त शर्मा [गाजियाबाद], डा० विनोद निगम [होशंगाबाद], राधेश्याम बंधु [दिल्ली], गणेश गम्भीर [मिर्जापर], डा० भारतेन्दु मिश्र [दिल्ली], रामकिशोर दाहिया [कटनी], डा० मालिनी गौतम [गुजरात], डा० रणजीत पटेल [मुजप्फरपुर], वेदप्रकाश शर्मा [गाजियाबाद], डा० रामसनेहीलाल शर्मा यायावर [फीरोजाबाद], मधुकर अष्ठाना [लखनऊ] ने अपने प्रतिनिधि नवगीतों का पाठ किया।
तीसरे सत्र में सम्राट आनन्द के निर्देशन में विभिन्न कलाकारों ने नवगीतों की संगीतमयी प्रस्तुति की। सुवर्णा दीक्षित ने नवगीतों पर आधारित नृत्य प्रस्तुत 
किया। गीतिका वेदिका एवं अन्य कलाकारों ने नवगीतों पर आधारित नाटक प्रस्तुत किया। इस अवसर पर अमित कल्ला तथा विजेन्द्र विज़ द्वारा निर्मित लघु फिल्में भी दिखायी गईं। रोहित रूसिया ने अपनी विशिष्ट सरस शैली में नवगीतों को प्रस्तुत कर यह सिद्ध किया कि नवगीतों की प्रस्तुति कितनी मनमोहक, आकर्षक और प्रभाशाली हो सकती है।
दूसरे दिन का चौथा सत्र अकादमिक शोधपत्रों के वाचन का सत्र रहा। कुमार रवीन्द्र के नवगीत संग्रह "पंख बिखरे रेत पर" में प्रयुक्त धूप की विभिन्न छवियों पर कल्पना रामानी ने महत्त्वपूर्ण शोधलेख तैयार करके प्रस्तुत किया। निर्मल शुक्ल के नवगीत संग्रह "एक और अरण्यकाल" पर शशि पुरवार ने इस संग्रह में प्रयुक्त मुहावरों के विविध रूपों पर शोध लेख प्रस्तुत किया। इन दोनों आलेखों को भरपूर सराहा गया। अन्त में गुजरात से आयीं विदुषी डा० उषा उपाध्याय ने "वर्ष २००० के बाद गुजराती गीतों की वैचारिक पृष्ठभूमि" पर लम्बा व्याख्यान प्रस्तुत किया जो बहुत प्रभावशाली रहा। डा० उषा उपाध्याय ने गुजराती गीतों के विविध अंशों को उदारण के रूप में रखकर बताया कि किस प्रकार गुजराती गीतों की संवेदना नवगीत के निकट है।
पाँचवा सत्र २०१४ में प्रकाशित नवगीत संग्रहों की समीक्षा पर केन्द्रित सत्र रहा। इस सत्र में रजनी मोरवाल के नवगीत संग्रह "अँजुरी भर प्रीति" पर कुमार रवीन्द्र की लिखी समीक्षा को ब्रजेश नीरज ने प्रस्तुत किया। जयकृष्ण राय तुषार के नवगीत संग्रह "सदी को सुन रहा हूँ मैं" पर शशि पुरवार ने समीक्षा प्रस्तुत की, अश्वघोष के नवगीत संग्रह "गौरैया का घर खोया है" तथा राघवेन्द्र तिवारी के नवगीत संग्रह "जहाँ दरक कर गिरा समय भी" पर डा० जगदीश व्योम ने समीक्षा प्रस्तुत की, रामशंकर वर्मा के नवगीत संग्रह "चार दिन फागुन के" पर मधुकर अष्ठाना ने समीक्षा प्रस्तुत की, रामकिशोर दाहिया के नवगीत संग्रह "अल्लाखोह मची" पर संजीव वर्मा सलिल द्वारा तथा विनय मिश्र के नवगीत संग्र "समय की आँख नम है" पर मालिनी गौतम द्वारा समीक्षा प्रस्तुत की गई। इस सत्र में चार नवगीत संग्रहों- "अल्लाखोह मची"- रामकिशोर दाहिया, "झील अनबुझी प्यास की" - डा० रामसनेही लाल शर्मा यायावर, "चार दिन फागुन के" - रामशंकर वर्मा, "कागज की नाव" - राजेन्द्र वर्मा, का लोकार्पण भी किया गया।
छठे सत्र में नवगीतकारों को अभिव्यक्ति विश्वम् नवांकुर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। पुरस्कृत नवगीतकारों में संजीव वर्मा सलिल तथा ओम प्रकाश तिवारी को २०१५ का पुरस्कार प्रदान किया गया तथा कल्पना रामानी को २०१४ का पुरस्कार प्रदान कर सम्मानित किया गया। नवगीत समरोह के विभिन्न सत्रों का संचालन डा० जगदीश व्योम तथा रोहित रूसिया ने किया। अन्त में पूर्णिमा वर्मन तथा प्रवीण सक्सेना ने सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।

प्रस्तुति-
डा० जगदीश व्योम
दिल्ली

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