Wednesday, June 14, 2023

उपवन का सन्नाटा

उपवन का सन्नाटा
एक चीख तोड़ गई
अनगिन संदर्भों के
प्रश्नचिह्न छोड़ गई

आँख है गुलाबों
शूलों की कारा में
आँगन की मर्यादा
शापों की धारा में
गाँव के अबोलों से
रिश्तों की टूटन भी
राखी के हाथों को
असमय मरोड़ गई
उपवन का... 

शैतानी मंसूबे
दाँव लगा जीत गए
पनघट के प्रेमभरे
कुंभ- कुंभ रीत गए
सदियों के स्निग्ध स्नात
खेतों की पगडंडी
बारूदी गलियारे
अनचाहे जोड़ गई
उपवन का... 

श्लोकों-सी जिंदगी
नारों में डूब गई
घाटों में बँधी हुई
नौका-सी ऊब गई
मावस का अविश्वास
जूड़े-सा छूट गया
दामिनी घट कालिख का
दुपहर में फोड़ गई.

-जीवन शुक्ल

निर्मल शुक्ल

सुन्दर शृंगार गीत है बधाई। लेकिन यह नवगीत नही हैं। श्रंगार एक प्रकार से नैसर्गिक सनातन मूल्य है और इस विषय वस्तु पर अब से पहले करोडों की संख्या मे गीत लिखे जा चुके हैं। नवगीत विमर्श में परंपरा में भी नवता का अनिवार्य आग्र्ह होता है। यदि वह नहीं दिखाई देता है तो उसे हम नवगीत कैसे कहेंगे। इस गीत की भाषा भी छायावादी काव्य भाषा से आगे बढी हुई नहीं दिखती है। आदरणीय शुक्ल जी का सम्मान करते हुए असहमत हूं। शुक्ल जी श्रेष्ठ नवगीतकार है लेकिन उनका यह गीत नवगीत नहीं लगता। इससे नई पीढी के नवगीतकारों में भ्रम पैदा न हो केवल इसलिए यह टिप्पणी कर रहा हूँ।

-भारतेन्दु मिश्र

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एक गीत यह भी....
निर्मल शुक्ल का गीत

सागर की प्यास...
बेसुध हैं
रोम रंध्र
विकल मनाकाश
मैं ठहरा
तुम ठहरे
सागर की प्यास
चंदा की कनी कनी
चंदन में सनी सनी
हौले से उतर आई
आंगन में छनी छनी
मैं भीगा
तुम भीगे
सारा अवकाश
मेंहदी के पात-पात
रंग लिए हाथ-हाथ
चुपके से थाप गये
सेमर के गात-गात
मैं डूबा
तुम डूबे
आज अनायास
सांसों की गंध-गंध
मदिर मदिर मंद मंद
जाने कब खोल गए
तार-तार बंध-बंध
मैं भूला
तुम भूले
सारा इतिहास

-निर्मल शुक्ल
२३ जून २०१५
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Comment-
 आ०भारतेन्दु जी आप ठीक कह रहे हैं.इसे मैने सुधार दिया है यह गीत मेरे गीत संग्रह 'नील वनो के पार'मे संग्रहीत है .शीर्षक में ,भूलवश गीत के स्थान पर नवगीत पोस्ट हो गया था.जिसे अब सुधार दिया गया है।

-निर्मल शुक्ल
June 23 at 6:30pm

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जी आपने सही किया।किंतु इसी बहाने नवगीत और गीत का फर्क समझने वाले मित्रो /किसी मित्र को भी आप और हम सही दिशा दे सकते हैं।मेरा लक्ष्य आपके गीत की समीक्षा के साथ ही इस अंतर को भी दोस्तो के सामने रखना था।आप तो नवगीत पर लगातार काम करते आ रहे हैं। आपकी समझ पर कोई प्रश्नचिन्ह नही लगा रहा हूं।उत्तरायण के अंक नवगीत की समझ को विकसित करने मे लगातार अग्र्णी भूमिका निभाते रहे हैं।लेकिन पिता और पुत्र मे जो नाम गुण विचार आदि के तमाम अंतर होते हैं,वे सब गीत और नवगीत मे भी हैं।

-भारतेन्दु मिश्र
June 23 at 7:11pm
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 पिता और पुत्र के सम्बंध के संकेत से गीत और नवगीत को आपने बखूबी समझा दिया है।
-राजेन्द्र वर्मा
July 4 at 7:33pm
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 जी राजेन्द्र जी दोनो एक कुल गोत्र के होते हुए भी एक कैसे हो सकते हैं।दोनो की धमनियो मे प्रवाहित रक्त ,नाक -नक्श,आवाज-,आचरण -व्यवहार आयु -विचार आदि एक ही नही हो सकते।..लेकिन कुछ मित्र गीत को ही नवगीत साबित करने मे हलाकान हुए जा रहे हैं और अपना कन्धा छिलवाए ले रहे हैं।..तो समझदारी से स्वीकार करना चाहिए किए दोनो आलग है।

-भारतेन्दु मिश्र
July 4 at 7:42pm
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आदरणीय भारतेन्दु जी यह तो सर्वविदित है कोई भी दो व्यक्ति सोच, विचार, मनन,ज्ञान आचरण ,व्यवहार आदि की दृष्टि से एक जैसे नहीं होते. आपकी विद्वता का कौन कायल नहीं होगा ...जिस गीत पर आप यहाँ विमर्ष कर रहे हैं ....उस पोस्ट को आपने अपनी विद्वता के चलते आनन फानन में "नवगीत की पाठशाला" से टिप्पणियों सहित कापी कर के "नवगीत विमर्ष "में पोस्ट कर दिया .....आपने सोचा होगा कि कन्धे छिलवाये हुये मित्रों मे से चलो एक को उजागर कर दें ...आप इतनी हडबडी में थे कि आपने यहाँ यह भी नहीं देखा कि वह पहले ही सुधार सहित वहीं एडिट किया जा चुका है जहाँ से आपने इसे उठाया था..अभी तक बात आई गई हो चुकी होती किन्तु आज आपने राजेन्द्र वर्मा की पोस्ट पर अपनी विद्वता की छाप छोडने का एक बार पुन: प्रयास किया है....मै , आपकी दष्टि में एक अदना सा तुकबन्दी करने वाला ही सही किन्तु आज मैं आहत हूँ कि मुझे अब इस आयु में पिता पुत्र कुल गोत्र के संबंध में जानकारी प्राप्त करनी पडेगी.........

-निर्मल शुक्ल
July 4 at 9:07pm
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जिस रचना पर यहाँ विमर्श हो रहा है.... उसे निर्मल शुक्ल जी ने गीत ही कहा है नवगीत नहीं.... इस विषयक कोई भ्रम नहीं रहना चाहिए......

-डा० जगदीश व्योम
July 4 at 9:24pm
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Manoj Jain Madhur कृपया वे कौन से मानक है जिनके आधार पर उक्त रचना को गीत संज्ञा से नवाज गया यह भी स्पस्ट करें कि प्रस्तुत रचना नवगीत क्यों नहीं है ?
मनोज जैन मधुर
July 4 at 10:15pm
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भारतेंदु जी ! आप विधा के आधिकारिक विद्वान हैं, पर निर्मल जी वरिष्ठ रचनाकार हैं- वे गीत और नवगीत में अंतर समझते हैं. ग्रुप में रचना पोस्ट करने में उनसे त्रुटि हुई है जिसे उन्होंने सुधार भी लिया था- इसलिए उनकी रचना को केंद्र में रखकर नवगीत पर विमर्श अपेक्षित न था. बहरहाल, अब इसे यहीं समाप्त किया जाना उपयुक्त रहेगा।

-राजेन्द्र वर्मा
July 4 at 10:53pm
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राजेन्द्र भाई आप सही कह रहे हैं किंतु ये विमर्श शुक्ल जी पर केन्द्रित न हो कर नवगीत पर केन्द्रित है। इस मंच का नाम ही नवगीत विमर्श है। अब शुक्ल जी इसे यदि अपने गीत से अलग करके नहीं देख रहे तो इसमे क्या किया जाए ? मैंने एक भी शब्द उनके लिए नहीं कहा है। इस गीत रचना के बारे में जो सही लगा बस वही कहा है। किंतु यदि शुक्ल जी को कहीं मेरे किसी शब्द से कष्ट पहुंचा है तो उसके लिए खेद है(हालांकि समीक्षा मे खेद व्यक्त करना भी उचित नही है) वे मेरे लिए आदरणीय हैं। किंतु यह भी सच है कि तमाम मंचीय आत्ममुग्ध लोग(जिन्हे मैने छिले हुए कन्धे वाले कह्ने की ओर संकेत किया है ) लगातार अपने गीतों को नवगीत साबित करने की योजना मे लगे रहे हैं। मैने भी कई गीत और नवगीत लिखे हैं।अनुभव की सीढी मे भी कई गीत और नवगीत एकत्र संकलित भी हैं।..मेरी समझ से किसी भी प्रकाशित हो चुकी रचना पर बात करना व्यक्ति पर बात करना नही होता है।..आप सब नही चाहते हैं तो इस गीत पर मेरी ओर से बात समाप्त।

-भारतेन्दु मिश्र
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Friday, May 05, 2023

नवगीत में क्या नहीं हो

परंपरा को अंधी लाठी से पीटना कभी अच्छा नहीं होता न ही हितकर होता है लेकिन नयेपन का सीमांकन भी क्या इतना आसान है? 
कौन सा शब्द नवगीत में प्रयोग नहीं हो, किन मिथकों का प्रयोग नहीं हो... यह व्यवहारिक रूप से इतना आसान भी नहीं है। 
कविता की तमाम विधाओं की तरह से नवगीत भी एक काव्य-विधा है और बहुत सशक्त विधा है... इसलिए उसमें किन शब्दों का प्रयोग न हो, कौन से मिथक नहीं प्रयोग हों आदि आदि... रचनाकार पर निर्भर है कि वह अपने कथ्य को कितने वैज्ञानिक ढंग से और कितने कौशल से साध पाता है.
विचार करें... 
-डा० जगदीश व्योम
5 मई 2023

Wednesday, November 25, 2015

नवगीत परिसंवाद-2015



 नवगीत महोत्सव-२०१५

हिन्दी नवगीत पर केन्द्रित नवगीत महोत्सव कालिन्दी विले, गोमती नगर, लखनऊ में २१ एवं २२ नवम्बर २०१५ को मनाया गया। बिना किसी सरकारी सहयोग के होने वाला नवगीत का यह कार्यक्रम अपनी तरह का अनूठा कार्यक्रम है जो विगत वर्षों से मनाया जा रहा है। शारजाह, संयुक्त अरब अमीरात में रह रही सुश्री पूर्णिमा वर्मन का नवगीत के प्रति विशेष लगाव और नवगीत को और अधिक लोकप्रिय बनाने की दृढ़ इच्छा का ही यह परिणाम है कि इतने बड़े स्तर पर नवगीत का यह आयोजन निरन्तर हो रहा है। नवगीत के वरिष्ठतम और नये रचनाकार एक साथ दो दिन के इस समारोह में एक साथ मिलकर नवगीत पर चर्चा करते हैं, नवगीत को समझने समझाने तथा उसकी गुत्थियों को सुलझाने की दिशा में मिल बैठकर विमर्श करते हैं। दरअसल नवगीत को ऐसे आयोजन के द्वारा निरन्तर लोकप्रिय तो बनाया ही जा रहा है इसके अतिरिक्त अनेक प्रतिभावान नवयुवक और नवयुवतियाँ नवगीत से प्रभावित होकर नवगीत से जुड़ रहे हैं। नवगीत अपने समकालीन सन्दर्भों को कथ्य बनाता ही है इसकी खास बात यह है कि समकालीन कथ्य को आन्तरिक लय और प्रवाह के साथ प्रस्तुत करता है जिससे इसकी प्रभावक शक्ति और बढ़ जाती है तथा श्रोता के मन पर सीधे असर करती है। नयी कविता का रूखापन नवगीत में सरसता के साथ प्रस्तुत होकर उसकी सम्प्रेषणीयता को द्विगुणित कर देता है। यही कारण है कि नवगीत वर्तमान की मुख्य काव्य विधा बन गया है। पूरे वर्ष भर नवगीत में कहाँ कहाँ, कौन कौन क्या क्या कार्य करता रहा है इसकी पूरी पड़ताल इस समारोह में की जाती है। कितने नवगीत संग्रह प्रकाशित हुए हैं, कितनी समीक्षाएँ नवगीत संग्रहों की हुई हैं, कितने नये रचनाकार नवगीत लेखन से जुड़े हैं यह सब यहाँ चर्चा का विषय बनते हैं। कोशिश यह रहती है कि उन रचनाकारों को आमंत्रित किया जाये जो पहले नहीं आये हों इस प्रकार नवगीत के सभी रचनाकारों के साथ बारी बारी से संवाद करने का अवसर मिल जाता है। नवगीत की पाठशाला से जुड़े नये पुराने नवगीतकारों को दो दिवसीय नवगीत महोत्सव की पूरे वर्ष प्रतीक्षा रहती है। यह समूचा कार्यक्रम पारिवारिक माहौल जैसा होता है।
नवगीत समारोह का शुभारम्भ दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। गीतिका वेदिका द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वन्दना के उपरान्त पूर्णिमा वर्मन की माता जी और नवगीत समारोह के सदस्य श्रीकान्त मिश्र को विनम्र श्रद्धांजलि देकर उनकी स्मृतिशेष को नमन किया गया।
विभिन्न नवगीतों पर रोहित रूसिया और पूर्णिमा वर्मन द्वारा बनायी गयी चित्र प्रदर्शनी को सभी ने देखा और सराहा।    
प्रथम सत्र में नवगीत की पाठशाला से जुड़े नये रचनाकारों द्वारा अपने दो दो नवगीत प्रस्तुत किये गये। नवगीत पढ़ने के बाद प्रत्येक के नवगीत पर वरिष्ठ नवगीतकारों द्वारा टिप्पणी की गई इससे नये रचनाकारों को अपनी रचनाओं को समझने और उनमे यथोचित सुधार का अवसर मिलता है। गीतिका वेदिका के नवगीतों पर रामकिशोर दाहिया ने टिप्पणी की, शुभम श्रीवास्तव ओम के नवगीतों पर संजीव वर्मा सलिल ने अपनी टिप्पणी की, रावेन्द्र कुमार रवि के नवगीतों पर राधेश्याम बंधु द्वारा टिप्पणि की गई, इसी प्रकार रंजना गुप्ता, आभा खरे, भावना तिवारी और शीला पाण्डेय के नवगीतों पर क्रमशः डा० रणजीत पटेल, गणेश गम्भीर, मधुकर अष्ठाना एवं राधेश्याम बंधु द्वारा टिप्पणी की गई। इस मध्य कुछ अन्य प्रश्न भी नये रचनाकारों से श्रोताओं द्वअरा पूचे गये जिनका उत्तर रचनाकारों द्वअरा दिया गया। प्रथम सत्र के अन्त में डा० रामसनेही लाल शर्मा यायावर ने नवगीत की रचना प्रक्रिया पर विहंगम दृष्टि डालते हुये बताया कि ऐसा क्या है जो वनगीत को गीत से अलग करता है। डा० यायावर ने अपनी नवगीत कोश योजना की भी जानकारी देते हुए बताया कि वे विश्व विद्यालय अनुदान आयोग की अति महत्त्वपूर्ण योजना के अन्तर्गत नवगीत कोश का कार्य शुरू करने जा रहे हैं यह कार्य नवगीत के क्षेत्र में अति महत्त्वपूर्ण और विश्वसनीय कार्य होगा।
दूसरे सत्र में वरिष्ठ नवगीतकारों द्वारा अपने प्रतिनिधि नवगीतों का पाठ किया गया ताकि नये रचनाकार नवगीतों के कथ्य, लय, प्रवाह, छन्द आदि को समझ सकें। नवगीत पाठ के बाद सभी को प्रश्न पूछने की पूरी छूट दी गई जिसका लाभ नवगीतकारों ने उठाया। इस सत्र में सर्व श्री योगेन्द्र दत्त शर्मा [गाजियाबाद], डा० विनोद निगम [होशंगाबाद], राधेश्याम बंधु [दिल्ली], गणेश गम्भीर [मिर्जापर], डा० भारतेन्दु मिश्र [दिल्ली], रामकिशोर दाहिया [कटनी], डा० मालिनी गौतम [गुजरात], डा० रणजीत पटेल [मुजप्फरपुर], वेदप्रकाश शर्मा [गाजियाबाद], डा० रामसनेहीलाल शर्मा यायावर [फीरोजाबाद], मधुकर अष्ठाना [लखनऊ] ने अपने प्रतिनिधि नवगीतों का पाठ किया।
तीसरे सत्र में सम्राट आनन्द के निर्देशन में विभिन्न कलाकारों ने नवगीतों की संगीतमयी प्रस्तुति की। सुवर्णा दीक्षित ने नवगीतों पर आधारित नृत्य प्रस्तुत 
किया। गीतिका वेदिका एवं अन्य कलाकारों ने नवगीतों पर आधारित नाटक प्रस्तुत किया। इस अवसर पर अमित कल्ला तथा विजेन्द्र विज़ द्वारा निर्मित लघु फिल्में भी दिखायी गईं। रोहित रूसिया ने अपनी विशिष्ट सरस शैली में नवगीतों को प्रस्तुत कर यह सिद्ध किया कि नवगीतों की प्रस्तुति कितनी मनमोहक, आकर्षक और प्रभाशाली हो सकती है।
दूसरे दिन का चौथा सत्र अकादमिक शोधपत्रों के वाचन का सत्र रहा। कुमार रवीन्द्र के नवगीत संग्रह "पंख बिखरे रेत पर" में प्रयुक्त धूप की विभिन्न छवियों पर कल्पना रामानी ने महत्त्वपूर्ण शोधलेख तैयार करके प्रस्तुत किया। निर्मल शुक्ल के नवगीत संग्रह "एक और अरण्यकाल" पर शशि पुरवार ने इस संग्रह में प्रयुक्त मुहावरों के विविध रूपों पर शोध लेख प्रस्तुत किया। इन दोनों आलेखों को भरपूर सराहा गया। अन्त में गुजरात से आयीं विदुषी डा० उषा उपाध्याय ने "वर्ष २००० के बाद गुजराती गीतों की वैचारिक पृष्ठभूमि" पर लम्बा व्याख्यान प्रस्तुत किया जो बहुत प्रभावशाली रहा। डा० उषा उपाध्याय ने गुजराती गीतों के विविध अंशों को उदारण के रूप में रखकर बताया कि किस प्रकार गुजराती गीतों की संवेदना नवगीत के निकट है।
पाँचवा सत्र २०१४ में प्रकाशित नवगीत संग्रहों की समीक्षा पर केन्द्रित सत्र रहा। इस सत्र में रजनी मोरवाल के नवगीत संग्रह "अँजुरी भर प्रीति" पर कुमार रवीन्द्र की लिखी समीक्षा को ब्रजेश नीरज ने प्रस्तुत किया। जयकृष्ण राय तुषार के नवगीत संग्रह "सदी को सुन रहा हूँ मैं" पर शशि पुरवार ने समीक्षा प्रस्तुत की, अश्वघोष के नवगीत संग्रह "गौरैया का घर खोया है" तथा राघवेन्द्र तिवारी के नवगीत संग्रह "जहाँ दरक कर गिरा समय भी" पर डा० जगदीश व्योम ने समीक्षा प्रस्तुत की, रामशंकर वर्मा के नवगीत संग्रह "चार दिन फागुन के" पर मधुकर अष्ठाना ने समीक्षा प्रस्तुत की, रामकिशोर दाहिया के नवगीत संग्रह "अल्लाखोह मची" पर संजीव वर्मा सलिल द्वारा तथा विनय मिश्र के नवगीत संग्र "समय की आँख नम है" पर मालिनी गौतम द्वारा समीक्षा प्रस्तुत की गई। इस सत्र में चार नवगीत संग्रहों- "अल्लाखोह मची"- रामकिशोर दाहिया, "झील अनबुझी प्यास की" - डा० रामसनेही लाल शर्मा यायावर, "चार दिन फागुन के" - रामशंकर वर्मा, "कागज की नाव" - राजेन्द्र वर्मा, का लोकार्पण भी किया गया।
छठे सत्र में नवगीतकारों को अभिव्यक्ति विश्वम् नवांकुर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। पुरस्कृत नवगीतकारों में संजीव वर्मा सलिल तथा ओम प्रकाश तिवारी को २०१५ का पुरस्कार प्रदान किया गया तथा कल्पना रामानी को २०१४ का पुरस्कार प्रदान कर सम्मानित किया गया। नवगीत समरोह के विभिन्न सत्रों का संचालन डा० जगदीश व्योम तथा रोहित रूसिया ने किया। अन्त में पूर्णिमा वर्मन तथा प्रवीण सक्सेना ने सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।

प्रस्तुति-
डा० जगदीश व्योम
दिल्ली

Monday, March 02, 2015

नवगीत क्या है

''समकालीन गीत आज किसी भावुक मन की अभिव्यक्ति भर या गाने गुनगुनाने भर की चीज न रहकर समय की विसंगतियों से सीधी आँख मिलाते हुए कविता और आदमीयत को बनाये और बचाये रखने की मुहिम में अपनी गीतात्मक धुरी पर संयत है, और किसी से कमतर नहीं है। जीवन का जो तमाम-कुछ शुभ और सुंदर, समय के क्रूर जबड़े का हिस्सा बन चुका है। वे चाहे जातीय स्मृतियाँ हों, संचित जीवन-मूल्य हों, परम्परित नाते-रिश्ते की ऊष्मा हो, लोक और लोकजीवन की छवियाँ हों, शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध के बारीक इंद्रिय-संवेदन हों, नवगीत ने उसको बचाये रखने का बीड़ा उठाया है।''

-शिव कुमार मिश्र

नवगीत क्या है

''नवगीत और जनगीतों में समकालीन समस्याओं से साक्षात्कार की चिंता है। इनमें सामाजिक संवेदनशीलता के विभिन्न पक्षों की अभिव्यक्ति और जन-जीवन के भीतर व्यक्ति मन के अंतर्द्वन्द्वों की पहचान की कोशिश भी है। इसलिए उनमें एक सहृदय कवि की सहज बौद्धिकता की चमक भी है जो पाठकों और श्रोताओं को प्रभावित भी करती है।''

-मैनेजर पांडेय



नवगीत क्या है

''नवगीत ने गीतकाव्य को सिर्फ भाषा, शिल्प और छंद की नवीनता ही नहीं प्रदान की है बल्कि उसकी अंतर्वस्तु को युगानुरूप सामाजिक चेतना देकर उसको प्रासंगिकता भी प्रदान की है। उसमें युग बोलता है, उसमें वर्तमान समय की धड़कनें सुनाई पड़ती हैं।''

-नामवर सिंह

Wednesday, November 27, 2013

नवगीत परिसंवाद २०१३

नवगीत को केन्द्र में रखकर दो दिवसीय कार्यक्रम २३ तथा २४ नवम्बर २०१३ को गोमती नगर, लखनऊ के कालिन्दी विला में सम्पन्न हुआ। नवगीत की पाठशाला के नाम से वेब पर नवगीत का अनोखे ढँग से प्रचार प्रसार करने में प्रतिबद्ध अभिव्यक्ति विश्वम द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम की कई विशेषताएँ हैं जो इसे अन्य साहित्यिक कार्यक्रमों से अलग करता है। माँ वागीश्वरी के समक्ष मंगलदीप जलाकर कलादीर्घा पत्रिका के सम्पादक एवं चित्रकार अवधेश मिश्र ने पोस्टर प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। कार्यक्रम की संयोजक पूर्णिमा वर्मन ने विगत दो वर्ष से आयोजित किये जा रहे नवगीत परिसंवाद की संक्षिप्त रूपरेखा तथा नवगीत के लिये अभिव्यक्ति विश्वम की नवगीत विषयक भावी योजनाओं के विषय में जानकारी दी।
कार्यक्रम का शुभारम्भ करते हुये डा० भारतेन्दु मिश्र (दिल्ली) ने अपने बीज-वक्तव्य में गीत और नवगीत के अन्तर को स्पष्ट करते हुए बताया कि कब कोई गीत नवगीत की संज्ञा से अविहित हो जाता है, गीत और नवगीत में बहुत सूक्ष्म अन्तर है, भारतेन्दु जी ने सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला और नागार्जुन की कविताओं के उद्धरणों के द्वारा गीत और नवगीत के अन्तर को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि नवगीत के लिए छन्द और युगीन संवेदना दोनों का होना आवश्यक है, नवगीत के लिए नई भाषा, नए मुहावरे और नए छन्द विन्यास की आवश्यकता होती है। यही दोनों के बीच बहुत महीन-सा अन्तर है।
देश और विदेश के नव रचनाकारों को नवगीत समझने व लिखने के लिये नवगीत की पाठशाला एक सहज मंच है। पाठशाला से जुड़े रचनाकारों- कृष्णनंदन मौर्य, वीनस केशरी, शशि पुरवार, ब्रजेश नीरज, सन्ध्या सिंह एवं श्रीकान्त मिश्र ’कान्त’ ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं जिन पर वरिष्ठ सहित्यकारों ने अपनी समीक्षात्मक टिप्पणियाँ देते हुए बताया कि किस नवगीत में कहाँ सुधार की आवश्यकता है।
पूर्णिमा वर्मन, विजेन्द्र विज, अमित कल्ला और रोहित रूसिया के द्वारा बनाये गये नवगीत पोस्टरों को दर्शकों के लिए विशेष रूप से लगाया गया था जिसे भरपूर सराहा गया।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में वरिष्ठ नवगीतकारों द्वारा नवगीत प्रस्तुत किये गये, मधुकर अस्ठाना (लखनऊ), डा० विनोद निगम (होशंगाबाद), डा० धनंजय सिंह (दिल्ली), दिनेश प्रभात (भोपाल), शशिकान्त गीते (खण्डवा) ने अपने-अपने प्रतिनिधि नवगीतों का पाठ किया, प्रत्येक कवि को रचना पाठ हेतु पच्चीस मिनट का समय दिया गया। सभी नवगीतकारों द्वारा प्रस्तुत किये गये नवगीतों पर प्रश्न पूछे गये जिसमें नचिकेता, मधुकर अस्ठाना, धनंजय सिंह, निर्मल शुक्ल, वीरेन्द्र आस्तिक, भारतेन्दु मिश्र जी एवं डा० जगदीश व्योम ने नवगीत के कथ्य, शिल्प व लय से सम्बंधित अनेक प्रश्नों व उत्तरों के द्वारा नवोदित गीतकारों का मार्गदर्शन किया।
तीसरे सत्र में नई पीढ़ी के रचनाकारों का कविता पाठ रखा गया। इसमें ओमप्रकाश तिवारी(मुम्बई), जयकृष्ण राय तुषार(इलाहाबाद), अवनीश सिंह चौहान (मुरादाबाद), रोहित रूसिया (छिन्दवाड़ा -म०प्र०), रविशंकर मिश्र (प्रतापगढ़) ने अपने नवगीत प्रस्तुत किये।
नवगीत के अकादमिक सत्र में वीरेन्द्र आस्तिक, नचिकेता, डा० भारतेन्दु मिश्र, गुलाब सिंह एव डा० ओमप्रकाश सिंह द्वारा नवगीतों के विविध पक्षों पर शोधलेख प्रस्तुत किये गये जिन पर चर्चा परिचर्चा में सभी ने अपने अपने स्तर के अनुरूप सहभागिता की।
चौथे सत्र में महिला नवगीतकारों ने काव्यपाठ किया जिसमें गीता पंडित(दिल्ली), यशोधरा राठौर(पटना), सीमा अग्रवाल, मधु प्रधान (कानपुर},  कल्पना रामानी (मुम्बई} ने अपने नवगीत प्रस्तुत किये। अतिथि कवियों में चन्द्रभाल सुकुमार तथा बल्ली सिंह चीमा की उपस्थिति सराहनीय रही दोनों कवियों ने काव्यपाठ किया।
विजेन्द्र विज एवं श्रीकान्त मिश्र नें मल्टीमीडिया विशेषज्ञ की भूमिका का निर्वहन किया। इस अवसर पर इन दोनों के द्वारा नवगीतों पर निर्मित लघु फिल्मों को दिखाया गया जिसे भरपूर सराहना मिली। इस अवसर पर नितिन जैन तथा रामशंकर वर्मा द्वारा निर्देशित नवगीतों पर नाट्यमंचन प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम का संचालन रोहित रूसिया ने किया।

नवगीत की पाठशाला द्वारा आयोजित २०१० तक की कार्यशालाओं से चुने हुये नवगीतों का एक संकलन "नवगीत-२०१३" अभिव्यक्ति विश्वम द्वारा प्रकाशित किया गया है, इस अवसर पर उक्त नवगीत संकलन का वरिष्ठ नवगीतकारों द्वारा लोकार्पण किया गया, इस संकलन में ८३ नवगीतकारों का एक एक नवगीत लिया गया है जिसमें नये रचनाकारों के साथ प्रतिष्ठित नवगीतकारों के पाठशाला पर प्रकाशित नवगीतों को भी प्रकाशित किया गया है।







Saturday, January 26, 2013

नवगीत विमर्श-2012


नवगीत कार्यशाला 2012

नवगीत को केन्द्र में रखकर उसके सन्दर्भ में विभिन्न कोणों से चर्चा करने के उद्देश्य से वर्ष 2012 की दो दिवसीय "नवगीत कार्यशाला" का आयोजन दिनांक 17-18 नवम्बर, 2012 को अनुभूति पत्रिका की संपादक पूर्णिमा वर्मन के लखनऊ स्थित आवास 'कालिंदी विले' में किया गया। वीथियों में चित्रकार, नवगीतकार रोहित रूसिया के द्वारा विभिन्न नवगीतों पर आधारित हृदयस्पर्शी नवगीत पोस्टर सभी की प्रशंसा के केन्द्र में रहे। रुसिया जी के द्वारा बनाये गये कविता पोस्टर नवगीत कार्यशाला की महत्ता और वर्तमान साहित्यिक परिदृश्य में नवगीत की प्रासंगिकता का जयनाद कर रहे थे। कार्यशाला में देश के विभिन्न प्रान्तों से पधारे मूर्धन्य नवगीतकारों की गरिमामयी उपस्थिति ने चार चाँद लगा दिए। हरियाणा से कुमार रवींद्र, बिहार से नचिकेता, भोपाल से दिवाकर वर्मा, कानपुर से वीरेंद्र आस्तिक, दिल्ली से डा० जगदीश व्योम, डा० राजेन्द्र गौतम, मुरादाबाद से अवनीश सिंह चौहान, डा० महेश दिवाकर, छत्तीसगढ़ से डा० सीमा अग्रवाल, महाराष्ट्र से ओमप्रकाश तिवारी,  मध्यप्रदेश से रोहित रूसिया, नितिन जैन प्रतापगढ़ से रविशंकर मिश्र, कलकत्ता से श्रीकान्त, मुम्बई से कल्पना रामानी, बरेली से डा० एम०पी०सिंह, लखनऊ से निर्मल शुक्ल, मधुकर अष्ठाना, अमिता दुबे, अनिल वर्मा, संध्या सिंह, आभा खरे, रामशंकर वर्मा आदि के अतिरिक्त दूसरे दिवस की नवगीत काव्य संध्या में अनेक प्रतिष्ठित नवगीतकार उपस्थित थे। कार्यशाला में पूर्णिमा वर्मन के साहित्यप्रेमी माता-पिता और पति श्री प्रवीण सक्सेना भी दो दिवसों तक सतत प्रवाही नवगीत-गंगा में रस स्नात होते रहे। 
17-11-2012 की प्रातः अल्प चायपान के पश्चात् पूर्व निश्चित कार्यक्रमानुसार हिसार हरियाणा से पधारे वयोवृद्ध प्रख्यात नवगीतकार कुमार रवीन्द्र के करकमलों द्वारा करतल ध्वनि के बीच मंगलदीप प्रज्ज्वलित कर कार्यशाला का प्रारंभ हुआ। इस वृहद् आयोजन की आयोजक हिंदी सेवी सम्मान से विभूषित प्रख्यात हिंदी सेवी पूर्णिमा वर्मन द्वारा लघु चित्रों के माध्यम से नवगीत पर प्रकाश डाला गया। इसके पश्चात नवगीत के सशक्त हस्ताक्षर कुमार रवींद्र, नचिकेता, डा० राजेंद्र गौतम आदि ने हिंदी कविता में नवगीत के प्रादुर्भाव, कलेवर, वैशिष्ट्य, प्रासंगिकता, लोक सम्प्रक्तता, विभिन्न कालखंडों में इसके विकास पर सारगर्भित, प्रामाणिक विशद विवेचन प्रस्तुत किया। डा० राजेंद्र गौतम ने देश-विदेश में हिंदी, हिंदी कविता विशेषकर नवगीत के रचनाकारों के बीच सेतु के दायित्व का निर्वहन करने के लिए पूर्णिमा जी की प्रशंसा की। उन्होंने नये नवगीतकारों का मार्गदर्शन करते हुये कहा कि जो भी लिखें वह तार्किक, वैज्ञानिक और युग सापेक्ष दृष्टिकोण पर आधारित हो, वह लोक सम्पृक्त हो। 
वरिष्ठ पुरोधा नवगीतकारों द्वारा नवगीत की सांगोपांग मीमांसा के बाद 'नवगीत की पाठशाला' से नवगीत सीखने वाले नवगीतकारों कल्पना रामानी, डा० सीमा अग्रवाल, श्रीकांत मिश्र, रविशंकर मिश्र, संध्या सिंह, रामशंकर वर्मा के द्वारा अपने नवगीत प्रस्तुत किया गये तथा उपस्थित नवगीतकारों ने इनकी समीक्षा की। जिज्ञासु रचनाकारों ने प्रश्न-प्रतिप्रश्न कर ज्ञानार्जन किया। 
मध्याह्न भोजन अन्तराल के बाद यह समागम पुनः प्रारंभ हुआ। सायंकाल कालिंदी विला की छत पर पूर्णिमा वर्मन की पटकथा पर आधारित प्रसिद्द नुक्कड़ नाट्य-निर्देशक नितिन जैन निर्देशित नुक्कड़ नाटक 'कंगाली में आटा गीला' का प्रभावी प्रदर्शन हुआ। प्रसिद्द नवगीतकारों के नवगीतों के अंशों के प्रयोग ने नुक्कड। नाटक की सामयिक कथावस्तु को जीवंत कर दिया। इसके पश्चात् नवगीत संगीत संध्या की सरस प्रस्तुति ने सहज ही उपस्थित श्रोताओं की तालियाँ बटोरी और ताल-वाद्य की जुगलबंदी ने नवगीतों का बहु आयामी पहलू रेखांकित किया। 
गीत-संगीत की मनोहारी प्रस्तुति के बाद आयोजक पूर्णिमा वर्मन द्वारा नाट्य कलाकारों तथा निर्देशक को विशेष रूप से बनवाये गये "अनुभूति" स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया गया। रात्रि भोजन के पश्चात् पहले दिवस के कार्यक्रमों का समापन हुआ।
दूसरे दिवस प्रातः चायपान के पश्चात् प्रथम सत्र में भारत के विभिन्न प्रदेशों में नवगीत के अस्तित्व और अस्मिता की चुनौतियों पर इन प्रदेशों के ख्यातिप्राप्त नवगीतकारों ने अपने आलेख प्रस्तुत किये। बिहार से श्री नचिकेता, मध्य प्रदेश से श्री दिवाकर वर्मा, उत्तर प्रदेश से श्री वीरेंद्र आस्तिक, महाराष्ट्र से ओमप्रकाश तिवारी ने इन प्रदेशों में नवगीत को शिखर पर पहुँचाने वाले नवगीतकारों के योगदान और उनकी रचनाधर्मिता पर भी सारगर्भित विवेचन प्रस्तुत किया।
मध्याह्न भोजन से पूर्व युवा नवगीतकार श्री अवनीश सिंह चौहान के नवगीत संकलन "कागज़ का टुकड़ा" का लोकार्पण समस्त नवगीतकारों ने मिलकर किया। गत वर्ष की नवगीत कार्यशाला 2011 पर आधारित पूर्णिमा वर्मन की पुस्तक नवगीत एक परिसंवाद का लोकार्पण किया गया। मनीषी कवियों द्वारा इनकी समालोचना भी की गयी। दूसरे दिन के दूसरे सत्र में नवगीत के प्रचार प्रसार में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तथा तकनीक व् नाटकों के प्रयोग पर डा० जगदीश व्योम, श्रीकांत मिश्र, रोहित रूसिया, नितिन जैन आदि द्वारा उपयोगी सुझाव दिए गये।
कार्यशाला के औपचारिक समापन से पूर्व आयोजक पूर्णिमा वर्मन ने समस्त सहभागियों को विशिष्ट स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया।
चुने हुये नवगीतों को कलाकारों ने संगीत के साथ प्रस्तुत किया। इस अवसर पर चित्रकार विजेन्द्र विज द्वारा निर्मित लघु फिल्म तथा डा० जगदीश व्योम की कविता पर प्रत्यूष द्वारा तैयार की गई लघु फिल्म "माँ कबीर की साखी जैसी" को प्रदर्शित किया गया जिसकी सभी ने भरपूर सराहना की तथा नवगीतों पर इस तरह की लघु फिल्में बनाये जाने पर विचार करने की बात कही गई।
कार्यशाला का अंतिम सत्र नवगीत काव्य संध्या को समर्पित था। प्रारंभ से अंत तक नवगीतकारों ने अपनी विविधतापूर्ण शैली में श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। इन नवगीतों में लोकचेतना, संस्कृति, समकालीन सरोकार, हताशा, आम जन की पीड़ा, प्रेम प्रकृति सभी कुछ मुखरित हुआ। नवगीतों का प्रस्तुतिकरण बहुत ही प्रभावशाली रहा

यश वैभव के हिम पर्वत पर।
-------संध्या सिंह

मगर सब अपने रूठ चले।
जीवन भर आपाधापी के 
क्या परिणाम मिले 
-----अनिल वर्मा

नवगीत का उन्वान है हिंदी
अशिक्षा मूढ़ता के श्राप का 
निर्वान है हिंदी। 
---------- रामशंकर वर्मा 

----ओम प्रकाश तिवारी

बारिश ने टाइप किया मौसम का पत्र।
---पूर्णिमा वर्मन

ये कैसा क्रन्दन 
दूर खड़े चुप रहे देखते 
हम पलाश के वन।
-------जगदीश व्योम 

कुर्सियों से कुर्सियों तक की लड़ाई का 
पहाडा है। 
----सुरेश उजाला

भ्रष्टाचार बढ़ा है भारी
रिश्वत चोर बाजारी फैली 
सदाचार ने हिम्मत हारी।
..डाक्टर महेश दिवाकर 

हुई प्लेटिनम दाल।
अब तो सपनों का भी मन में 
पड़ने लगा अकाल।
----मधुकर अष्ठाना 

तुम्हे दिखते नहीं क्या?
---- निर्मल शुक्ल 

प्रहरियों के राम जी मालिक।
-----दिवाकर 

अभी बीता पखवारा है
चादर नई खाट पर 
अब तक नहीं बिछाई है। 
---नचिकेता 

मुस्कराईं देव प्रतिमाएं
अभी धरती सुरक्षित है।
------कुमार रवींद्र 

है शब्द-शब्द उलझा
दरके दरके शीशे में
चेहरा बाँचा समझा
सिद्ध जनों पर 
हँसता जाये
टुकड़ा कागज का।
---अवनीश सिह चौहान

झुकाओ मत मुझे
एक अवसर दे रहा अब भी तुझे। 
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बाद अभावों की आई है 
डूबी गली गली।
दम साधे हम देख रहे हैं 
कागज की नाव चली।
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औरों के क्रूर आचरन 
कई बार कर लिए सहन।
अपनों का अनजानापन 
मीत सहा नहीं जाता।